Thursday, April 20, 2017

500 रुपए रोज....डॉ. संगीता गाँधी


सरकारी हस्पताल के एक कोने में आमिर  बुत बना बैठा था ।अनजाना अँधेरा उसके चारों ओर छाया था ।
ये क्या हो गया ? उसने अपने ही हाथों से अपने दिल के टुकड़े को कैसे मार दिया !
अंदर डॉ उसके 12 साल के बेटे का इलाज कर रहे थे ।सर पर पत्थर लगने से  आमिर के बेटे का बहुत खून बह चुका था ।डॉ. पूरी कोशिश कर रहे थे ।
आमिर  एक ग़रीब ,लाचार शाल बनाने वाला बुनकर था । सर्दियों में वो कश्मीर से बाहर जा कर शाल बेचकर पैसे कमा लेता था पर गर्मियां एक मुसीबत बन कर आती थीं । 2 दिन से घर का चूल्हा नहीं जला था । आमिर किसी काम की तलाश में था , तब उसे रफ़ीक मिला ।
रफ़ीक -काम करोगे ,बहुत आसान है ।
आमिर -  हाँ ,साहब करूँगा ,घर  वाले भूखे हैं ।
रफ़ीक -चौक पर खड़ा हो कर पत्थर मारने हैं , 500 मिलेंगे एक दिन के !
आमिर एक अनपढ़ ,गरीब था । उसे न राजनीती की समझ थी न अलगाववादियों के षड्यंत्रों का पता था । उसके लिए  बहुत बड़ी बात थी की एक दिन के 500 मिल रहे हैं ।
आमिर ने एक दिन एक बड़ी भीड़ का हिस्सा बन सेना पर पत्थर  मारे ।
शाम को 500 मिले.......घर वालों को खाना मिला ।
अगले दिन फिर आमिर गया । भीड़ पत्थर फेंक रही थी ।आमिर भी फेंक रहा था........तभी आमिर ने देखा उसका पत्थर एक बच्चे को लगा ।शक्ल उसे कुछ पहचानी सी लगी ।दौड़ कर पास गया तो सुन्न हो गया ! ये तो उसका ही "खून " था । उसका 12 साल का बेटा  बेहोश पड़ा था ।
आमिर  उसे उठा कर दौड़ा । शहर के खराब हालात में जैसे तैसे कई घंटों में अस्पताल  पहुंचा ।
डॉ. ने उसके कंधे पर हाथ रखा .....हम बच्चे को बचा नहीं पाए ,खून काफी निकल चुका था ।
आमिर  बेसुध सा खड़ा था , उसकी  लुटी हुई दुनिया  की तस्वीर की मानिंद बच्चे की लाश पड़ी थी । तभी  उसका दोस्त  अस्पताल पहुंचा.....ये लो आमिर , रफ़ीक ने तुम्हारे 500 दिए हैं !!
आमिर का एक हाथ बच्चे की लाश पर था , दूसरे में 500 थे !!  अज्ञात अँधेरा उसकी दुनिया  को निगल चुका  था।

-डॉ. संगीता गांधी

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