Thursday, April 27, 2017

वही रिश्ता प्यासा तिश्नगी से.....नूर मुहम्मद 'नूर'

हवा से, रोशनी से, ज़िन्दगी से
मैं आजिज आ न जाऊं शायरी से

भरोसा तोड़ता फिरता हूं सबका
मैं क्या बोलूं अपने आदमी से

मैं सहरा से ज्यादा कुछ कहां था
वही रिश्ता प्यासा तिश्नगी से

यही काम आएगी ऐ नूर भाई
भरोसा हो चला है तिरगी से

ये दुनियां और उसकी दुनियादारी
फकत देखा करूं बस बेबसी से

- नूर मुहम्मद 'नूर' 

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