औरत का दर्द आजीवन पराश्रित कहने को तो घर की लक्ष्मी हक़ीक़त में लाचार और विवश। जन्मने से पहले जन्मने के बाद न जाने कब दबा दिया जाय इसका गला। तरेरती आँखें नोचने को तत्पर न घर, न बाहर रही अब सुरक्षित, जीवन की रटना जीवन भर खटना दूसरों की खातिर खुद को होम करना। -दिनेश ध्यानी
बहुत सही ..
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