Saturday, October 22, 2016

अलविदा............विजय कुमार सप्पत्ति

सोचता हूँ 
जिन लम्हों को, 
हमने एक दूसरे के नाम किया है 
शायद वही ज़िंदगी थी !

भले ही वो ख़्यालों में हो , 
या फिर अनजान ख़्वाबों में ..
या यूँ ही कभी बातें करते हुए ..
या फिर अपने अपने अक़्स को,
एक दूजे में देखते हुए हो ....

पर कुछ पल जो तुने मेरे नाम किये थे...
उनके लिए मैं तेरा शुक्रगुजार हूँ !!

उन्हीं लम्हों को,
मैं अपने वीरान सीने में रख,
मैं,
तुझसे ,
अलविदा कहता हूँ ......!!!
अलविदा !!!!!!











-विजय कुमार सप्पत्ति

vksappatti@gmail.com

3 comments:

  1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-10-2016) के चर्चा मंच "अर्जुन बिना धनुष तीर, राम नाम की शक्ति" {चर्चा अंक- 2504} पर भी होगी!
    अहोई अष्टमी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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