नदी.....
शिला खण्डों पर बहता
नदी का उद्दाम यौवन
नहीं है
नदी की जय-गाथा
और न ही
किनारों से बंधा
शांत प्रवाह
पराजय की
शिथिल पग-यात्रा.
किसने देखे
शिव की जटाओं में
विशाल पाषाण-खण्ड
और गंगा के
अवतरण नृत्य के
पद-क्षेप उन पर.
कूल की मिट्टी में धंसी
प्रस्तर शिलाएं
मर्यादित जिनसे रही नदी.
नदी और पाषाण का संग
नदी की नियति नही है
नदी का भाग्यक्रम भी नहीं
केवल यह
प्रकृति का स्वाभाविक
निर्धारण.
विजयी नहीं होती नदी
पराजित नहीं होती
केवल प्रवाहित होती है
नदी.
-नीरज मनजीत
वास्तव में काफी अच्छी रचना
ReplyDeleteअति सुंदर
ReplyDeleteनदी केवल प्रवाहित होती है ... सुन्दर अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteSundar Rachna !
ReplyDeleteYou are welcome on my Blog manojbijnori12.blogspot.com
सुंदर रचना
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