Sunday, May 18, 2014

रात ढले तक चलना होगा अनजाने फुटपाथों पर........नसीम आलम नारवी

 
माना आज अंधेरों में हैं काशाने फुटपाथों पर।
कल का सबेरा लायेगा सूरज चमकाने फुटपाथों पर।।

नया सबेरा जगमग करती शाहराह दिखलायेगा,
रात ढले तक चलना होगा अनजाने फुटपाथों पर।।

फिरने दे मजनूं को सहरा-सहरा, साथी देख इधर,
सरगर्दां हैं पेट की खातिर दीवाने फुटपाथों पर।।

सरमाये की चोर गली से अपना लेना-देना क्या,
आओ चलें हम मेहनत के जाने-माने फुटपाथों पर।।

धर्म, जात, भाषा के चर्चे उठने लगे फिर ज़ोरों से,
कौन फरेबी आन बसा है क्या जाने फुटपाथों पर।।

मुल्ला, पंडित, ज्ञानी, फादर घूम रहे गलबाहें डाल,
उलझ रहे हैं दीवानों से दीवाने फुटपाथों पर।।

मस्ती-ए-मय की जाने क्या तफसील बयाँ की वाइज़ ने,
गलियों से आ गये हैं, उठकर मयखाने फुटपाथों पर।।

-नसीम आलम नारवी

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