मायाजाल हुए तो?
कभी सोचती हूँ
ये सब छल ही हुए तो?
मृत्योपरान्त के प्रलोभन
कहीं निराधार हुए तो?
स्वर्ग, नर्क, मोक्ष ही स्वयं
मायाजाल हुए तो?
धर्म आचरण संवरण
कर्म प्रार्थना आवरण
सब मिथ्या हुए तो?
ऐसा भी तो सम्भव है
कि ये कहानियाँ हैँ बस
बहला फुसलाकर व्यवस्था बनाये रखने की-
हमारी मान्यताओं को रंगकर
अपना उल्लू सीधा करने की
जहाँ
उल्लू हम हैं
और सीधा कुछ भी नहीं।
-मोनालिसा मुखर्जी
Bilku, swarg, nark kisney dekha hai...inki sacchai utni hee durlabh hai jitna hamara is prithvi par ana:)
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