Sunday, January 6, 2013

औरत की ख़ामोशी.................सोनल चौधरी

 सुने गौर से कोई कभी तो
औरत की खामोशी को
वो कितना कुछ है कह जाती
बिन कुछ कहे भी
चोटें उसके तन की
हैं चीख चीख कर बतलाती

क्या होता, क्या उस पर बीते
बंद दरवाजों के पीछे
उसकी चुप्पी भी, है कह जाती
होंठ तो उसके मौन रहे
पर लम्हे कई अंगार भरे
है रोती हुई आँखें दर्शाती

दहेज और सती के नाम पे
हैं कितने अत्याचार हुए
फिर भी ये खड़ी है खामोश
गर ये चीख उठी कभी
चारों ओर मचेगी तबाही
कैसे नहीं घबराए मन ये सोच

माँ दुर्गा के पुजारी को
भी शर्म नहीं आती देखो
लाचार औरत की लज्जा नोच
गर इस मूक औरत ने कभी
अपने बंधन तोड़ दिए सभी
होगा सर्वनाश, घबराए मन ये सोच

-सोनल चौधरी

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