गहराई में समाऊं कैसे
तेरी याद से जुदा होऊँ कैसे
गुजरे लम्हें भुलाऊँ कैसे
दिल से उठते धुएं से रोकी साँसे,
तेरी याद से जुदा होऊँ कैसे
गुजरे लम्हें भुलाऊँ कैसे
दिल से उठते धुएं से रोकी साँसे,
दबी चिनगारी बुझाऊँ कैसे.
रोम रोम में बस चुकी दुलार तेरा,
दाग इसके कहो मिटाऊँ कैसे.
खुद की निगाहों में गुनाहगार हुआ,
तेरे सामने नजर उठाऊँ कैसे
जो आ सकूँ तो कैसे न आऊँ,
तुझे जानबूझ कर रुलाऊँ कैसे.
शमा ने चाहा कि परवाना जले,
मरने के डर से इसे बुझाऊँ कैसे.
शोख नजरों ने की गुस्ताखी,
इनकी गहराईयों मे जाऊँ कैसे.
--डॉ. अनिल चड्ढा
दबी चिनगारी बुझाऊँ कैसे.
ReplyDeleteरोम रोम में बस चुकी दुलार तेरा,
दाग इसके कहो मिटाऊँ कैसे.
खुद की निगाहों में गुनाहगार हुआ,
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राहुल भाई धन्यवाद
Deleteबेहद खूबसूरत पंक्तियाँ सुन्दर रचना बधाई
ReplyDeleteशुक्रिया अरुण भाई
Deleteमरने के डर से इसे बुझाऊँ कैसे.
ReplyDeleteशोख नजरों ने की गुस्ताखी,
इनकी गहराईयों मे जाऊँ कैसे
इसके आगे कुछ लिखूं कैसे ............
दीदी
Deleteप्रणाम
खूबसूरत पंक्तियाँ सुन्दर रचना ***^^^***दबी चिनगारी बुझाऊँ कैसे.
ReplyDeleteरोम रोम में बस चुकी दुलार तेरा,
दाग इसके कहो मिटाऊँ कैसे.
खुद की निगाहों में गुनाहगार हुआ,
तेरे सामने नजर उठाऊँ कैसे
जो आ सकूँ तो कैसे न आऊँ,
तुझे जानबूझ कर रुलाऊँ कैसे.
शमा ने चाहा कि परवाना जले,
मरने के डर से इसे बुझाऊँ कैसे.
शोख नजरों ने की गुस्ताखी,
इनकी गहराईयों मे जाऊँ कैसे
आभार मधु बहन
Deleteआभार रविकर भाई
ReplyDeleteगहराई में समाऊं कैसे
ReplyDeleteतेरी याद से जुदा होऊँ कैसे
गुजरे लम्हें भुलाऊँ कैसे
दिल से उठते धुएं से रोकी साँसे,
............खूबसूरत पंक्तियाँ
दबी चिनगारी बुझाऊँ कैसे.
ReplyDeleteरोम रोम में बस चुकी दुलार तेरा,
दाग इसके कहो मिटाऊँ कैसे.
खुद की निगाहों में गुनाहगार हुआ,
बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति :
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बहुत खूबसूरत रचना ! एक बहुत ही भावपूर्ण उत्कृष्ट अभिव्यक्ति !
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