सिर्फ, एक छोटा-सा पल
तुम्हें लेकर आया मुझ तक,
और जैसे मैंने जी लिया एक पूरा युग।
.....
उस एक संक्षिप्त पल में
गुजरी मुझ पर एक साथ
भीनी हवाओं की नरम थपकियाँ
बरसीं मीठी शीतल सावन बूँदें
बिखरी कच्ची टेसू पत्तियाँ
कानों में घुलती रही देर तक
तुम्हारी नीम गहरी आवाज
मेरी आँखों में चमकती रहीं
तुम्हारी शहदिया दो आँख
मेरी अँगुलियों में महकता रहा
तुम्हारे जाने का अहसास
.....
दिल की गुलमोहर बगिया में
खिली देर तक एक सुहानी आस।
सामने थे तब कितनी दूर थे तुम
अब जब कहीं नहीं हो तब
कितने आसपास....बनकर खास!
एक मधुरिम प्यास..!
-स्मृति आदित्य "फाल्गुनी"
दिल की गुलमोहर बगिया में
ReplyDeleteखिली देर तक एक सुहानी आस।
सामने थे तब कितनी दूर थे तुम
अब जब कहीं नहीं हो तब
कितने आसपास....बनकर खास!
एक मधुरिम प्यास..!
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सच .. रचना पढने के बाद एक शीतल बयार आत्मा को स्पर्श कर फुर्र हो गयी .. अभी मै जिस जगह पर हूँ और अपने लैपटॉप पर इसको कई बार पढ़कर सब कुछ भूल सा जाना चाहता हूँ ... टिप्पणी कुछ ज्यादा ही लम्बी हो गयी ... शायद ..
राहुल भाई
Deleteये कविता है ही ऐसी
कोई भी दो बार पढ़े बगैर नही रहता
anubhuti ki parakastha ,dil ke bhavo ki bejod prastuti ****सिर्फ, एक छोटा-सा पल
ReplyDeleteतुम्हें लेकर आया मुझ तक,
और जैसे मैंने जी लिया एक पूरा युग।
Beautiful!
ReplyDeleteउम्दा!!
ReplyDeleteसिर्फ, एक छोटा-सा पल
ReplyDeleteतुम्हें लेकर आया मुझ तक,
और जैसे मैंने जी लिया एक पूरा युग।
प्यार के सही मायने समझा गई ......
.... बहुत ही प्यारा .... !!
bahut achchhi rachana ke liye aabhar yashoda ji ........nayee purani halchal pr geet sunaya eske liye bhi aabhar ......apki pasand kafi achchhi lgi .
ReplyDeletesumdar Prastuti....
ReplyDeleteसिर्फ, एक छोटा-सा पल
तुम्हें लेकर आया मुझ तक,
और जैसे मैंने जी लिया एक पूरा युग।
भाई
Deleteआपको देखे पूरा साल गुजर गया
कहाँ थे आप
सादर