माँ ... मैं एक कोशिश बनी
हार के क्षणों को अपनी विजय में
परिवर्तित करने के लिए
पर तुम्हारे मन का संताप बन गई
....
मैं एक कोशिश बनी
पापा का मस्तक ऊँचा कर जाऊँ
नहीं कर सकी ऐसा
और ताउम्र की घुटन बन गई
...
मैं हर क्षण लड़ी
भइया के काँधे पर चढ़ विदा होने के लिए
रक्षा का वचन लेते - लेते
मैं उनकी आँख के कोरों का आँसू बन
मन का संत्रास बन गई
....
मैं बनना चाहती थी अपनी
अपनी बहनों के लिये आदर्श
सखियों की नज़र का अभिमान
बहुत अन्याय किया मैने
हर एक के साथ और हिचकी बन
उनके गले का मौन बन अवरूद्ध हो गई
जीवन पर्यन्त के लिए
....
तुम जब भी करो मेरी मुक्ति के लिए
शांति का पाठ तो उन पलों में
एक दुआ करना
किसी भी जनम में बिटिया न बनूँ
ये कहते हुये मन से बस मन से
तुम ये तर्पण करना !!!
--सदा
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किसी भी जनम में बिटिया न बनूँ
ReplyDeleteये कहते हुये मन से बस मन से
तुम ये तर्पण करना !!!
:'(
सदा दीदी ने सही ही लिखा है
Deleteपता नहीं क्यूँ मानने को जी चाहता है
वाह . बहुत उम्दा,
ReplyDeleteaap ne ek chngari utha kar fek di hai,yahi chingari betion ko jina sikhayegi तुम जब भी करो मेरी मुक्ति के लिए
ReplyDeleteशांति का पाठ तो उन पलों में
एक दुआ करना
किसी भी जनम में बिटिया न बनूँ
ये कहते हुये मन से बस मन से
तुम ये तर्पण करना !!!
ये कहते हुये मन से बस मन से
ReplyDeleteतुम ये तर्पण करना !!!
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कुछ दर्द, कुछ तल्खियां
बस दुश्वारियां और दुश्वारियां ....
बेटे बेटियों में भेदभाव प्रदर्शित करती बेटियों की आहत दिल की आवाज। बेहतरीन प्रस्तुती।
ReplyDeleteएक दुआ करना
ReplyDeleteकिसी भी जनम में बिटिया न बनूँ
ये कहते हुये मन से बस मन से
तुम ये तर्पण करना !!!
बहुत गहरे भाव है !!!
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