Friday, July 6, 2012

नए खिलते सहर तक |........ डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति

ख्वाहिशों की सिगड़ी पर

आंसुओं से नम हुए

कच्चे ख्वाब

सुलगे नहीं

किसी भी रात …..

जबकि अँधेरे की तिपाई पर बैठ कर

तन्हा रात

नींद की फूंकनी से

सुलगाती रही ख्वाब …..

उस रात की झील पर

सिसकती ख्वाबों की टूटी कश्ती

डूबी नहीं

न डूबेगी कभी |

इक दिन वह

ढूंढ ही लेगी अपना किनारा

सूरज के दस्तक से

नए खिलते सहर तक 


---- डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति

7 comments:

  1. धन्यवाद यशोदा जी... मेरी इस कविता को यहाँ पर अपने ब्लॉग में जगह दी...किन्तु मेरा नाम गलत लिखा गया है... उसे ठीक कर लीजियेगा... सादर .

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    1. शुभ पभात
      शुक्रिया
      ठीक कर देती हूँ

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    2. दीदी ठीक कर दी हूँ
      कृपया देखिये
      सादर

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  2. नींद की फूंकनी से

    सुलगाती रही ख्वाब …..

    काफी दिलकश उम्मीदें .........

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    1. धन्यवाद राहुल भाई

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  3. .....बहुत ...खूब ...........

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