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एक बार जो ढल जाएंगे
शायद ही फिर खिल पाएंगे।
फूल शब्द या प्रेम
पंख स्वप्न या याद
जीवन से जब छूट गए तो
फिर न वापस आएंगे।
अभी बचाने या सहेजने का अवसर है
अभी बैठकर साथ
गीत गाने का क्षण है।
अभी मृत्यु से दांव लगाकर
समय जीत जाने का क्षण है।
कुम्हलाने के बाद
झुलसकर ढह जाने के बाद
फिर बैठ पछताएंगे।
एक बार जो ढल जाएंगे
शायद ही फिर खिल पाएंगे।
-अशोक वाजपेई
वाह बहुत खूब ।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-03-2019) को "नारी दुर्गा रूप" (चर्चा अंक-3268) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत लाजवाब....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteiwillrocknow.com
बहुत खूब .....
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