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मेरी अखियों में वो ख्वाब सुनहरा था
मेरे ख्वाब को कोमल पंखुड़ियों ने घेरा था
वदन को उसका आज इंतजार गहरा था
खिंचने लगी बिन डोर उसकी श्वांसों की ओर
मेरी श्वासों ने चुना वो शख्स हीरा था
आज की शाम बेहद नशीली थी
उसकी आहटों की सुंगध सी फैली थी
क्या पता था आज क्या मिलने वाला था
दीदार उसका किसको होने वाला था
उसकी परछाईं मेरी परछाईं से टकरा गयी
मेरी हर श्वांस उसकी श्वांस में समा गयी
बाद में वो परछाईं पानी में टकराने लगी
नियत उसकी दिले आईने में नजर आने लगी
उसकी नजरें हृदय के पार न जा सकीं
उसकी सारी बातें हारे दिल से हार गयीं
जाग उठी बेगैरत ख्वाब से जल्दी
हँस पड़ी हँसते दर्द से आँखें अपनी
चमक में हीरा पर श्वाद जहरीला था
छै घंटे की नींद को एक ख्वाब ने घेरा था
मुझे तो हुआ मात्र एक भ्रम था
वो तो सिर्फ़ एक खूबसूरत धुंध था।
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बहुत सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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