Saturday, December 8, 2018

सार्थक....सरोज दहिया


कष्टों से मुक्ति मिल जाये
ऐसा कुछ प्रयास करो,
सावधान रहकर कांटों से
फूल फूल चुन लिया करो;
तो भी कंटक चुभ ही जायें
तो भी क्या परेशानी है,
उसका तो स्वभाव चुभन है
तो भी क्या बेमानी है;
कंटक भी कोमल हो जायें,
कोमलता को पूछे कौन
सब कुछ कोमल-कोमल होगा,
ज्ञान चुभन का देगा कौन ?
जिसको जितना ज्ञान चुभन का
उतना कोमल खुद बन जाता,
खुद कितने भी कंटक झेले,
औरों का दीपक बन जाता;
अपने हाथ-पैर छलनी कर
जो औरों को मार्ग बताता,
जीवन की सार्थकता मिलती
जग के मग में फूल बिछाता ।

-सरोज दहिया

7 comments:

  1. बेहतरीन रचना
    सादर..

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  2. बहुत सुन्दर सरोज जी. एक पुराना नग्मा याद आ गया -
    अपने लिए जिए तो क्या जिए,
    तू जी ऐ दिल ! ज़माने के लिए.

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  3. सुन्दर रचना

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  4. बहुत सुंदर भावों की सार्थक रचना।

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