Sunday, December 23, 2018

सुविचार....रचनाकार अज्ञात

धार वक़्त की बड़ी प्रबल है, इसमें लय से बहा करो,
जीवन कितना क्षणभंगुर है, मिलते जुलते रहा करो।

यादों की भरपूर पोटली, क्षणभर में न बिखर जाए,
दोस्तों की अनकही कहानी, तुम भी थोड़ी कहा करो।

हँसते चेहरों के पीछे भी, दर्द भरा हो सकता है,
यही सोच मन में रखकर के, हाथ दोस्त का गहा करो।

सबके अपने-अपने दुःख हैं, अपनी-अपनी पीड़ा है,
यारों के संग थोड़े से दुःख, मिलजुल कर के सहा करो।

किसका साथ कहाँ तक होगा, कौन भला कह सकता है,
मिलने के कुछ नए बहाने नित, रचते-बुनते रहा करो।

मिलने जुलने से कुछ यादें, फिर ताज़ा हो उठती हैं,
इसीलिए यारो  बिन कारण भी, मिलते जुलते रहा करो।


3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (24-12-2018) को हनुमान जी की जाति (चर्चा अंक-3195) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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