Monday, December 24, 2018

हाइकु गुलशन...अशोक बाबू माहौर

सड़क चौड़ी 
ऊबड़ खाबड़ है 
पथ दुर्गम। 

आँखें कजरी 
गाल लालिमा से हैं 
होंठ गुलाबी। 

पानी बहता 
नदी उफान भरी 
बारिश तेज़ । 

चादर फटी 
ठण्ड आफत लाती 
ओढ़ता कौन। 
-अशोकबाबू माहौर

3 comments:

  1. बेहतरीन हाईकु रचनाएँ👌

    ReplyDelete
  2. –हाइकु सही है , हाईकु सही नहीं है
    –पोस्ट हाइकु से असहमति है...
    –अशोक बाबू से सादर अनुरोध है वे हाइकु क्या है को जानने की कोशिश करें

    सादर

    ReplyDelete
  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-12-2018) को "परमपिता का दूत" (चर्चा अंक-3196) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete