Friday, December 7, 2018

बजी कहीं शहनाई सारी रात.....रमानाथ अवस्थी

सो न सका कल याद तुम्हारी आई सारी रात
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात।

मेरे बहुत चाहने पर भी नींद न मुझ तक आई
ज़हर भरी जादूगरनी सी मुझको लगी जुन्हाई
मेरा मस्तक सहला कर बोली मुझसे पुरवाई

दूर कहीं दो आंखें भर भर आईं सारी रात
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात।

गगन बीच रुक तनिक चंद्रमा लगा मुझे समझाने
मनचाहा मन पा जाना है खेल नहीं दीवाने
और उसी क्षण टूटा नभ से एक नखत अनजाने

देख जिसे मेरी तबियत घबराई सारी रात
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात।

रात लगी कहने सो जाओ देखो कोई सपना
जग ने देखा है बहुतों का रोना और तड़पना
यहां तुम्हारा क्या‚ काई भी नहीं किसी का अपना

समझ अकेला मौत मुझे ललचाई सारी रात
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात।

मुझे सुलाने की कोशिश में जागे अनगिन तारे
लेकिन बाजी जीत गया मैं वे सबके सब हारे
जाते जाते चांद कह गया मुझको बड़े सकारे

एक कली मुरझाने को मुस्काई सारी रात
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात।

~ रमानाथ अवस्थी

7 comments:

  1. अद्भुत अप्रतिम हरचना बेजोड़ दर्द को उकेर दिया सयाही से ।
    वाह।

    ReplyDelete
  2. रात लगी कहने सो जाओ देखो कोई सपना
    जग ने देखा है बहुतों का रोना और तड़पना
    यहां तुम्हारा क्या‚ काई भी नहीं किसी का अपना

    वाह !

    https://eksacchai.blogspot.com/2018/12/kumbhkarnrahul.html

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर रचना, रमानाथ अवस्थी जी की.

    ReplyDelete
  4. अप्रतिम रचना।

    ReplyDelete
  5. बहुत ही लाजवाब रचना...
    वाह!!!

    ReplyDelete