Tuesday, December 4, 2018

ख़ामोशी की साँस....श्वेता सिन्हा

ख्याल
साँझ की
गुलाबी आँखों में,
डूबती,फीकी रेशमी
डोरियों के
सिंदूरी गुच्छे,
क्षितिज के कोने के
स्याह कजरौटे में
समाने लगे,
दूर तक पसरी
ख़ामोशी की साँस,
जेहन में ध्वनित हो,
एक ही तस्वीर
उकेरती है,
जितना  झटकूँ
उलझती है
फिसलती है आकर
पलकों की राहदारी में
ख्याल बनकर।
-श्वेता सिन्हा
मूल रचना

7 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (05-12-2018) को "बीता कौन, वर्ष या तुम" (चर्चा अंक-3176) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  2. वाह ! बहुत ख़ूब ! ख़ामोशी की साँस का सुन्दर चित्रण।

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  3. बहुत सुंदर रचना

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  4. वाह ... बहुत सुंदर रचना

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  5. अति उत्तम
    टिप्पणी से परे
    ...
    सिंदूरी गुच्छे,
    क्षितिज के कोने के
    स्याह कजरौटे में
    समाने लगे,
    .
    फिसलती है आकर
    पलकों की राहदारी में
    ख्याल बनकर।
    .
    इन दो पंक्तियों को पढ़कर मन, मर्कट की भाँति नाच उठा। इस सृजन की सारी सौन्दर्यता का स्रोत, वाकई मजा आ गया पढ़कर।
    सादर नमन मैम

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  6. एक विनती है, हो सके तो ध्यान दीजियेगा,
    कहीं-कहीं अनुस्वार का लोप है।
    कृपया अन्यथा न लें, सादर🙏🙏🙏

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