Monday, December 17, 2018

इसी गुलाबी सर्दी के साथ याद आ रही हैं ........गुलज़ार

न जाने क्यों महसूस नहीं होती वो गरमाहट, 
इन ब्राँडेड वूलन गारमेंट्स में ,
जो होती थी 
दिन- रात, उलटे -सीधे फन्दों से बुने हुए स्वेटर और शाल में.

आते हैं याद अक्सर 
वो जाड़े की छुट्टियों में दोपहर के आँगन के सीन,
पिघलने को रखा नारियल का तेल, 
पकने को रखा लाल मिर्ची का अचार.

कुछ मटर छीलती,
कुछ स्वेटर बुनती, 
कुछ धूप खाती
और कुछ को कुछ भी काम नहीं,
भाभियाँ, दादियाँ, बुआ, चाचियाँ.

अब आता है समझ, 
क्यों हँसा करती थी कुछ भाभियाँ ,
चुभा-चुभा कर सलाइयों की नोक इधर -उधर,
स्वेटर का नाप लेने के बहाने,

याद है धूप के साथ-साथ खटिया
और 
भाभियों और चाचियों की अठखेलियाँ.

अब कहाँ हाथ तापने की गर्माहट,
वार्मर जो है.

अब कहाँ एक-एक गरम पानी की बाल्टी का इन्तज़ार,
इन्स्टेंट गीजर जो है.

अब कहाँ खजूर-मूंगफली-गजक का कॉम्बिनेशन,
रम विथ हॉट वॉटर जो है.

सर्दियाँ तब भी थी 
जो बेहद कठिनाइयों से कटती थीं,
सर्दियाँ आज भी हैं, 
जो आसानी से गुजर जाती हैं.

फिर भी 
वो ही जाड़े बहुत मिस करते हैं,
बहुत याद आते हैं.
-गुलज़ार

9 comments:

  1. वाह । वाकई याद आते हैं।

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  2. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 18/12/2018
    को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18-12-2018) को "कुम्भ की महिमा अपरम्पार" (चर्चा अंक-3189) (चर्चा अंक-3182) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. पुरानी यादों को फिर ताज़ा कर दिया.. आभार

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  5. जिन्होंने जियें हैं वो दिन उन्हें याद आते हैं...बहुत लाजवाब खूबसूरत यादें सहेजे...

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  6. वाह बहुत सुन्दर! कहां गये वो रात दिन।
    गुलजार साहब हमेशा लाजवाब दिल के पास का ही लिखते हैं।

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  7. गुलज़ार शायरी थोड़ी करते हैं, वो तो बस, हमारी पुरानी यादों को कुरेदकर ताज़ा कर देते हैं. कभी हमको फिर से शरारती लेकिन मासूम सा बच्चा बना देते हैं तो कभी निडर, रूमानी गबरू जवान बना देते हैं. उनकी नज़्मों के लिए पुराने रिश्ते बड़े ज़रूरी होते हैं. लेकिन उनकी नज़्मों में एक बड़ी खराबी भी है और वो यह कि इन्हें पढ़कर हम अपने चेहरे पर देवता होने का मुखौटा नहीं लगा सकते.

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  8. कुछ पुरानी यादें फिर से ताज़ा हो गयीं ... शुक्रिया

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