Friday, May 4, 2018

लड़की..........डॉ. कंचन वर्मा


 लड़की 
औक़ात में रह अपनी। 
आखिर ,
सोचा भी कैसे 
कि
यह देह तेरी अपनी है?
अरी नादान ,
देह तेरी –
बपौती है पुरुष की ॥ 
बसाते हैं घर 
बढ़ाते हैं वंशबेल 
सजती हैं दुकानें । 
किसने कहा तुझे 
अपने जिस्म की
है मालकिन तू ?
पुरुष को न सौपने 
की ज़ुर्रत ?
पछताना होगा तुझे 
अपने इस दुस्साहस पर –
तेज़ाब में जलना
गोलियों से उड़ा देना 
सिर के परखछे 
और आख़िर में –
कुछ नहीं तो 
समूहिक वहशीपन के 
हिंसक लपटों में 
जलना होगा । 
वहीं सजेगी तेरी चिता
डोली न सही 
कंधा तो देगा ही पिता ॥ 
क्या करेगी जब 
घरों की दीवारें छोड़ साथ 
धकिया कर बाहर 
और 
सड़के लील जाने को तैयार 
बाटेंगी हवायें दूरदराज़ 
तेरी आवरपन के 
चटखारेदार क़िस्से॥ 
सिखाया गया सबक 
फिर एक बार 
लड़की 
भूल गयी औक़ात अपनी ?
रूआँसी लड़की ने कहा –
पर , “आज़ाद“ है मुल्क मेरा । 
आवाज़ें उठीं पुरज़ोर –
सब मर्दानी –
तूने कैसे समझ लिया 
तू भी 
"आज़ाद” है ?
लड़की , औक़ात मे रह अपनी 
औक़ात में ॥
-डॉ. कंचन वर्मा

9 comments:

  1. अद्भुत कंचन जी तीखा कटाक्ष ....पैना और नुकीला
    👏👏👏👏👏👏👏👏👏
    दोयम हो तुम दोयम रहना
    दोयम को कैसा अधिकार
    सहना केवल सहना ही है
    यही याद रखो दिन रात !

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (05-05-2017) को "इंतजार रहेगा" (चर्चा अंक-2961) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत सटीक कटाक्ष.... सोचनीय एवं विचारणीय....
    वाह!!!

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  4. कड़वी सच्चाई।

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  5. आदरणिया डॉक्टर कंचन वर्मा जी आपने जो लिखा कुछ हद तक ये विसंगती है भी सही मगर पूर्ण सत्य भी नही है ।। हम पुरुषो का अस्तितव ही मातृशक्ती से है ।। कुछ बहसी कुत्ते है जिनके कारण आपकी कलम ने अपनी पीड़ा व्यक्त करी है ।। नमन है आपको

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