Tuesday, May 29, 2018

ओ पेड़....ललित कुमार

इस रचना में सूखे पेड़ की निश्चलता का वर्णन है। किस तरह यह अचल वृक्ष तमाम उम्र अपने चारों ओर होती गतिविधियों को देखता रहता है। गतिमान संसार में उसके करीब से तो लोग ग़ुज़रते हैं -लेकिन उसका अपना कोई नहीं होता।



ओ पेड़
मैं समझ सकता हूँ
तुम्हारी विवशता को
लेकिन बस कुछ हद तक
किसी का दर्द, किसी की विवशता
कोई दूसरा कहाँ आंक सकता है
लोग लगा सकते हैं बस अनुमान
गहरी हताशा भरे किसी के अंतर में
कोई दूसरा कहाँ झांक सकता है

धरती इतनी विशाल है लेकिन
जन्मते ही नियती ने
बस दो-चार गज़ माटी से
तुम्हें बांध दिया
तब से तुम बरसों-बरस
अपने सीमित क्षितिज को
यूं ही निहारने पर विवश हो
क्यूँ कर नहीं चल सकते तुम भी
बस यही विचारने को विवश को

पास खेलते बच्चों की गेंद
जब करीब आ गिरती है
तो तुम्हारे मन के पांव उठते हैं
कि तुम लपक कर गेंद उठाओ
और बच्चों की ओर उछाल दो
लेकिन मन के पांवों से
ना शरीर चलता है
और ना ही मन के हाथों से
गेंद उठती है
ज़मीन के भीतर गड़ी
अपनी जड़ों को तुम खींचते तो होंगे
पर आशा और विश्वास का बल
गति में परिवर्तित न होता होगा
धरती चाहे जितनी बड़ी हो
पर तुम्हारे लिये तो गज़ दो-चार
बस यही तुम्हारा है घर-बार
सूरज के निकलने से
सूरज के ढलने तक
जीवन के बनने से
जीवन के बिखरने तक
बस यही तुम्हारा है संसार
ये माटी जो है गज़ दो-चार

मैं समझ सकता हूँ
तुम्हारी एकाकी पीड़ा को
तुम किसी-से अपनेपन का
बंधन भी नहीं बांध सकते
विश्व तो गतिमय है
लोग आते हैं, तुमसे नाते बनाते हैं
फिर छोड़ कर आगे बढ़ जाते हैं
तुम इस निरन्तर चलती दुनिया में
उनके साथ, उनके जैसे नहीं चल पाते
तो वे भी तुम्हारे पास क्यूँ रुकें ?
बस यही सोच कर तुम
ख़ुद को समझाते हो
पर आखिर में तुम
अकेले ही रह जाते हो

हाँ मैं समझ सकता हूँ
ओ पेड़
ललित कुमार
14 जनवरी 2009

मूल रचना


8 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-05-2018) को "किन्तु शेष आस हैं" (चर्चा अंक-2986) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

    ReplyDelete
  3. वाह व्यथित पेड़ की व्यथा सुंदर ।

    ReplyDelete
  4. वाह!!सुंदर अभिव्यक्ति ।

    ReplyDelete

  5. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 30 मई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


    ReplyDelete
  6. आस्र्निय यशोदा दीदी -- ये रचना पढवाने के लिए कोटिश आभार | इसने मुझे बहुत प्रभावित किया है | कविवर को सादर नमन | पेड़ की विवशता !!!!!!वाह !!!

    ReplyDelete
  7. वाह ! खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत खूब ।

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर....

    ReplyDelete