Monday, October 20, 2014

हम ऐसी भी इक हार संभाले हुए हैं..........नवनीत शर्मा

 


 मुस्‍कराहट को जो रुख़सार संभाले हुए हैं
दिल में लगता है कि आज़ार संभाले हुए हैं

दिल के खण्डरात के सब्ज़े में हैं इतनी यादें
कितना कुछ हम भी न बेकार संभाले हुए हैं

धूप, बरसात, हवाओं से बचाती है हमें
हम तेरी याद की दीवार संभाले हुए हैं

क्‍यों भला ग़ैर लगायेगा निशाना मुझपर
काम ये मेरे तरफ़दार संभाले हुए हैं

उठ गये लोग थियेटर हुआ ख़ाली लेकिन
आप अब तक वही किरदार संभाले हुए हैं

बाद जिसके न कोई जीत हमें जीत सकी
ख़ुद में हम ऐसी भी इक हार संभाले हुए हैं

आप अख़लाक़ के पहलू को भी देखें साहब
इससे क्‍या होगा कि दस्‍तार संभाले हुए हैं

मुल्‍क की, कौ़म की क्‍या बात करूं मैं इनसे
ये भले लोग तो घर-बार संभाले हुए हैं

रेगज़ारों की कोई बात न कुछ छालों की
"आप ज़ंजीर की झंकार संभाले हुए हैं"

तीरगी हमको है
"नवनीत" ज़िया से बेहतर
रोशनी, सुनते हैं बाज़ार संभाले हुए हैं

नवनीत शर्मा 09418040160

http://wp.me/p2hxFs-1Pi

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - मंगलवार- 21/10/2014 को
    हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 38
    पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,

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  2. Bahut sunder prastuti...dhanteras va deewali ki shubhkamnaayein !!

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