Tuesday, October 14, 2014

दुआओं में असर भी न मिला..........आले अहमद सरूर



वो जिएँ क्या जिन्हें जीने का हुनर भी न मिला
दश्त में ख़ाक उड़ाते रहे घर भी न मिला

ख़स ओ ख़ाशाक से निस्बत थी तो होना था यही
ढूँढने निकले थे शोले को शरर भी न मिला

न पुरानों से निभी और न नए साथ चले
दिल उधर भी न मिला और इधर भी न मिला

धूप सी धूप में इक उम्र कटी है अपनी
दश्त ऐसा के जहाँ कोई शजर भी न मिला

कोई दोनों में कहीं रब्त निहाँ है शायद
बुत-कदा छूटा तो अल्लाह का घर भी न मिला

हाथ उट्ठे थे क़दम फिर भी बढ़ाया न गया
क्या तअज्जुब जो दुआओं में असर भी न मिला

बज़्म की बज़्म हुई रात के जादू का शिकार
कोई दिल-दादा-ए-अफ़सून-ए-सहर भी न मिला.



 दश्त : मरुस्थल, ख़ाशाक : सूखी घांस  , निस्बत : नाता  ,शरर चमक,  शजर: पेड़, रब्त: रिश्ता,  निहाँ: छिपा,  तअज्जुब: आश्चर्य, बज़्म: सभा ,


 आले अहमद सरूर
जन्म : 09 सितम्बर 1911,बदायूं उ.प्र.
मृत्यु : 08 फरवरी 2002, दिल्ली




 

3 comments:

  1. आपने बहुत सच्चाई के साथ लिखा धन्यवाद
    https://www.facebook.com/RsDiwraya.
    आपका आँगन गूँजेगा पक्षियो की चहचाहाट से

    ReplyDelete
  2. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के - चर्चा मंच पर ।।

    ReplyDelete
  3. बहुत बढ़िया भावभीनी याद ...
    सुन्दर प्रस्तुति ..

    ReplyDelete