Monday, January 14, 2013

उम्मीद.................कवि अशोक कश्यप


तपती गर्मी में जिस दरख्त ने राहत दी थी
आज पतझड़ हुआ तो कुल्हाड़ी तलाशते हो

कोपलें आएँगी और फल भी ये तुम्हें देगा
क्यों उम्मीदों की शाख को अभी तराशते हो

फूलने-फलने को कुछ खाद-पानी दो तो सही
करो मेहनत निठल्ले रहके क्यों विलासते हो

जिसने चाहा है उसे मिला है तुम आजमा लो
हौसले खोते हो क्यों हिम्मतें क्यों हारते हो

ये दुनिया गोल है समय का चक्र गोल ही है
कल वहां और थे तुम जिस जगह विराजते हो

सभी कुछ आसमां से इस ज़मीं पर दिखता है
क्यों अपने कृत्यों पे तुम उजला पर्दा डालते हो

यहाँ दामन पे सबके दाग़ है छोटा ही सही
क्यों हंसके दूसरों की पगड़ियाँ उछालते हो


----कवि अशोक कश्यप

6 comments:

  1. यहाँ दामन पे सबके दाग़ है छोटा ही सही
    क्यों हंसके दूसरों की पगड़ियाँ उछालते हो....
    -----------------------------------------
    bahut hi sundar

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  2. सभी कुछ आसमां से इस ज़मीं पर दिखता है
    क्यों अपने कृत्यों पे तुम उजला पर्दा डालते हो
    सच !
    अपने गिरेबान में झांकना आसान कहाँ होता है !!

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  3. आभार प्रदीप भाई

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  4. बहुत सुंदर .... अच्छी प्रस्तुति

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  5. बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

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