Friday, January 1, 2021

वो हर युग में छली जाती हैं ...वसुंधरा व्यास

पेन्टिग बलवीर मेहता

स्त्रियाँ सुनती नहीं
बुनती हैं....
नित नए ख़्वाब
नित नई उम्मीद के साथ
घर.. परिवार, परिवेश
और...
जीवन को रससिक्त रखने के
वे जानती हैं..
जिस दिन वो सुनने लगेंगी
संपूर्ण प्रकृति अपना संतुलन खो बैठेगी
स्त्रियाँ कभी नहीं
सहना चाहतीं
अपनी अस्मिता पर आघात
और.. तिरस्कार
इसीलिए...
स्त्रियाँ सुनती नहीं.
बुनती हैं
संवेदनाओं की सलाइयों पर
सुलगते एहसासों के नर्म- गर्म स्वेटर
भस्म कर देना चाहती हैं
अपने अंतर्मन की अग्नि से
जीवन की विसंगतियों से निर्मित
अत्याचारों के घने जंगल
उन्हें पता है कि,
वो हर युग में छली जाती हैं
इसीलिए,
स्त्रियाँ सुनती नहीं
धुनती हैं जीवन को रुई की तरह
और ढूंढ ही लेती हैं
मोक्ष का मार्ग...
प्रेम से
वात्सल्य से

-वसुंधरा व्यास .  

3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 01 जनवरी 2021 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. उन्हें पता है कि,
    वो हर युग में छली जाती हैं
    इसीलिए,
    स्त्रियाँ सुनती नहीं
    धुनती हैं जीवन को रुई की तरह
    और ढूंढ ही लेती हैं
    मोक्ष का मार्ग...
    प्रेम से
    वात्सल्य से बहुत सुन्दर सृजन - - नूतन वर्ष की असंख्य शुभकामनाएं।

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  3. वाह वसुंधरा जी क्या खूब ल‍िखा है...स्त्रियाँ कभी नहीं
    सहना चाहतीं
    अपनी अस्मिता पर आघात
    और.. तिरस्कार
    इसीलिए...
    स्त्रियाँ सुनती नहीं.
    बुनती हैं
    संवेदनाओं की सलाइयों पर
    सुलगते एहसासों के नर्म- गर्म स्वेटर...वाह

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