Friday, January 22, 2021

मरने की चाहत होती जाती है ...अँजू डोकानिया

मुहब्बत क्या हुई  जैसे  इबादत होती जाती है|
कि सजदे में झुकने की आदत होती जाती है||

चलाओ तीर कितने भी सितम चाहे करो जितने|
जो उल्फत हो गई इक बार तो बस  होती जाती है ||

वृहद सरिता  प्रेम मेरा लहर सा इश्क़ है तेरा|
जो उतरोगे तले इसके कयामत होती जाती है||

मैं मुजरिम हूँ करो पेशी मेरी इश्क़ ए अयानत में|
किया है जुर्म उल्फत का ये तोहमत होती जाती है||

मुहब्बत नाम है "अँजू" शिद्दत का, वफाओं का|
चले जो इस डगर मरने की चाहत होती जाती है||

-अँजू डोकानिया 

11 comments:

  1. मैं मुजरिम हूँ करो पेशी मेरी इश्क़ ए अयानत में|
    किया है जुर्म उल्फत का ये तोहमत होती जाती है||
    वाह!

    ReplyDelete
  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज शुक्रवार 22 जनवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  3. मैं मुजरिम हूँ करो पेशी मेरी इश्क़ ए अयानत में|
    किया है जुर्म उल्फत का ये तोहमत होती जाती है||
    वाह👌👌👌👌👌

    ReplyDelete
  4. बेहतरीन ग़ज़लगोई 👏👏।
    उम्दा शेर।

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  6. वाह। बहुत खूब। हर शेर लाजवाब। सादर बधाई।

    ReplyDelete