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दिल्लगी सिर्फ इक बहाना था।
उनका मकसद तो आज़माना था।।
मैं तो लूटा गया उन्हीं से फिर ।
जिनसे रिश्ता बहुत पुराना था ।।
तोड़ डाला उसी ने दिल देखो ।
जिसका दिल मे ही आना जाना था ।।
हो गई कहकशाँ में जब साजिश ।
इक सितारे को टूट जाना था ।।
तेरी यादें भी कितनी ज़ालिम थीं ।
रात भर अश्क़ को बहाना था ।।
मौत के बाद आये हैं जिनको ।
दम निकलने से पहले आना था ।।
चार कंधे नसीब भी न हुए ।
साथ जिसके खड़ा जमाना था ।।
रिन्द प्यासा गया तेरे दर से ।
जाम कुछ तो उसे पिलाना था ।।
क्या जरूरत थी आपको मेरी ।
आसमा सर पे जब उठाना था ।।
-डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी
वाह
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 18 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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