यदि तुमको स्वीकार नहीं है।
झट से कह दो प्यार नहीं है।।
बातों में मत यूँ उलझाओ
प्रेम करो अथवा ठुकराओ
तुम तो मोल-भाव करती हो
प्रेम कोई व्यापार नहीं है।
झट से कह दो प्यार नहीं है।।
मुँह से आह कढ़ी जाती है
हद से बात बढ़ी जाती है
क्योंकर मुझको झेल रही हो
जब दिल ही तैयार नहीं है।
झट से कह दो प्यार नहीं है।।
सुख की गंध तुम्हें प्यारी है
दुःख का बोझ बहुत भारी है
हर कठिनाई डटकर झेलें
जीवन का आधार यही है।
झट से कह दो प्यार नहीं है।।
तुम्हें पता है मैं कैसा हूँ
मैं पहले से ही ऐसा हूँ
सच्चाई स्वीकार करो यह
सपनों का संसार नहीं है।
झट से कह दो प्यार नहीं है।।
मैं तेरी बातों में आकर
माँ को छोड़ तुम्हें अपनाकर
तेरे आगे पूँछ हिलाऊँ
यह मेरा व्यवहार नहीं है।
झट से कह दो प्यार नहीं है।।
तुमको समझा कर मैं हारा
उड़न-खटोला तुमको प्यारा
जिसपर तुमको रोज घुमाउँ
मेरे घर वह कार नहीं है।
झट से कह दो प्यार नहीं है।।
एक बात तुमको बतला दूँ
कह दो तो मैं गाँठ लगा दूँ
तेरे कारण दुनियाँ छोड़ूँ
मुझको यह अधिकार नहीं है।
झट से कह दो प्यार नहीं है।।
झूठ-मूठ मत प्यार जताओ
नई राह कोई अपनाओ
मैं अपने रस्ते जाता हूँ
तुम पर कोई भार नहीं है।
झट से कह दो प्यार नहीं है।।
समय नहीं बर्बाद करो तुम
खुद को अब आज़ाद करो तुम
ढूंढो कोई मीत निराला
मुझको कुछ प्रतिकार नहीं है
झट से कह दो प्यार नहीं है।।
-कौशल शुक्ला
सुन्दर रचना
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 19 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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ReplyDeleteबहुत ही मनमोहक कौशल जी ।
ReplyDeleteसरल सहज सा प्रवाह लिए सुंदर सृजन।