Tuesday, February 4, 2020

बसंत तुम आ तो गये हो! ....रवीन्द्र सिंह यादव

बसंत तुम आ तो गये हो! 
लेकिन कहाँ है...
तुम्हारी सौम्य सुकुमारता ?
आओ!
देखो!
कैसे कोमल मन है हारता।

खेत, नदी, झरने, बर्फ़ीली पर्वत-मालाओं में 
फ़स्ल-ए-गुल के अनुपम नज़ारे, 
बुलबुल, कोयल, मयूर, टिटहरी 
टीसभरे बोलों से बसंतोत्सव को पुकारे। 

अमराइयों में नवोदित मंजरियों का
बसंती-बयार के साथ मोहक नृत्य,
मानव का सौंदर्यबोध से पलायन 
वर्चस्व-चेष्टा के अनेक आलोच्य-कृत्य। 

अभी गुज़र जाओ चुपचाप 
सन्नाटे में विलीन है पदचाप
बदलती परिभाषाओं की व्याख्या में 
अनवरत तल्लीन हैं बसंत-चितेरे। 
© रवीन्द्र सिंह यादव 

7 comments:

  1. वाह जितनी तारीफ की जाए कम है.

    वर्चस्व-चेष्टा के अनेक आलोच्य-कृत्य। अभी गुज़र जाओ चुपचाप
    सन्नाटे में विलीन है पदचाप
    बदलती परिभाषाओं की व्याख्या में
    अनवरत तल्लीन हैं बसंत-चितेरे।

    👏👏👏

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  2. वाह! उम्दा सृजन आदरणीय रवीन्द्र सर द्वारा।

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  3. वसंत की बहार मन की बहार है,नहीं तो सब बेकार है
    बहुत सुन्दर

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  4. मेरी धरोहर ब्लॉग पर मेरी रचना को प्रदर्शित करने हेतु सादर आभार आदरणीया यशोदा बहन जी। रचनाकार को विशेष ख़ुशी देता है मेरी धरोहर पर रचना का प्रकाशन। मेरी धरोहर के प्रति आपका समर्पण सराहनीय एवं स्तुत्य है। जारी रहे यह सफ़र। शुभकामनाएँ।


    रचना की सराहना के लिये आप सभी का सादर आभार।

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  5. वाह!!!
    कमाल का सृजन
    बहुत ही लाजवाब

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  6. बहुत शानदार प्रस्तुति।

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