Wednesday, January 30, 2019

यादों में पगलाई शाम....श्वेता सिन्हा

उतर कर आसमां की
सुनहरी पगडंडी से
छत के मुंडेरों के
कोने में छुप गयी
रोती गीली गीली शाम
कुछ बूँदें छितराकर
तुलसी के चौबारे पर
साँझ दिये के बाती में
जल गयी भीनी भीनी शाम
थककर लौट रहे खगों के
परों पे सिमट गयी
खोयी सी मुरझायी शाम
उदास दरख्तों के बाहों में
पत्तों के दामन में लिपटी
सो गयी चुप कुम्हलाई शाम
संग हवा के दस्तक देती
सहलाकर सिहराती जाती
उनको छूकर आयी है
फिर से आज बौराई शाम
देख के तन्हा मन की खिड़की
दबे पाँव आकर बैठी है
लगता है आज न जायेगी
यादों में पगलाई शाम
-श्वेता सिन्हा
कवि कौन?


14 comments:

  1. वाह बहुत सुंदर पंक्तिया....मनमोहक सी

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  2. बहुत सुन्दर श्वेता जी
    सादर

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  3. बहुत ही सुंदर.....
    लाजवाब।

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31.01.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3233 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  5. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 31 जनवरी 2019 को प्रकाशनार्थ 1294 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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  6. कवि मन और कौन एहसास मे बौराया भीगा थका हारा मन। आशा को समेटे पगलाया मन ।
    बहुत बहुत सुंदर रचना वाह्ह्ह ¡¡¡

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  7. बेहद सुन्दर सृजन ।

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  8. हर तरह की शाम का खूबसूरत चित्र मनमस्तिष्क पर बनता गया पंक्तिबद्ध होकर...
    बहुत लाजवाब...
    वाह!!!

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  9. फिर से आज बौराई शाम
    देख के तन्हा मन की खिड़की
    दबे पाँव आकर बैठी है

    लाजवाब,हर एक तन्हा शाम की बेचैनी को जुबा दे दी हैं आपने,शायद अगर शामों की जुबान होती तो ये ही बयान होते।
    बेहतरीन।

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  10. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन प्रथम परमवीर चक्र से सम्मानित वीर को नमन : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  11. लाजबाब ...,स्नेह सखी

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