मेरी धरोहर..चुनिन्दा रचनाओं का संग्रह
Friday, May 12, 2017
बँधे हैं हम..............सुशांत सुप्रिय
कितनी रोशनी है,
फिर भी कितना अँधेरा है!
कितनी नदियाँ हैं,
फिर भी कितनी प्यास है!
कितनी अदालतें हैं,
फिर भी कितना अन्याय है!
कितने ईश्वर हैं,
फिर भी कितना अधर्म है!
कितनी आज़ादी है,
फिर भी कितने खूँटों से
बँधे हैं हम!
-सुशांत सुप्रिय
1 comment:
Sudha Devrani
May 12, 2017 at 10:59 PM
सही में....सटीक....
बहुत सुन्दर
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सही में....सटीक....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर