मदर्स डे....
लो आ गया फिर से
मदर्स डे
यद्यपि है तो ये
पाश्चात्य परम्परा....
उन्होंने ही...
किसी को महत्वपूर्ण जताने
साल का एक दिन..
उसके नाम कर दिया
परन्तु......
इसके विपरीत
अपने भारत में....
वर्ष का पूरा तीन सौ पैंसठ दिन
माँ के नाम ही तो है
सीमित नहीं यहाँ तक भी
जो भी देता है जीवन
और ज़रूरी है जीवन के लिए
उसे भी माँ की कोटि में
गिना जाता है
माता तो धरती भी है..
जो अपना सीना चीर कर
अन्न देती है
माता भारत भी है...
जिसकी जय-जयकार
हम नित्य करते हैं..
गाय तो माता कहलाती ही है
पतित पावनी गंगा-जमुना
भी माताएँ ही हैं....
........................पर
ये तो भारत है.....
सम्मान के साथ-साथ..
दुर्व्यवहार भी होता रहता है
माता का सदा-सर्वदा
मन की उपज
-यशोदा
सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteये तो भारत है.....
ReplyDeleteसम्मान के साथ-साथ..
दुर्व्यवहार भी होता रहता है
माता का सदा-सर्वदा
सच एक दोहरी परम्परा यह भी है
सार्थक चिंतन
सार्थक रचना
ReplyDeleteमदर्स डे की हार्दिक शुभकामनाओं सहित , " ब्लॉग बुलेटिन की मदर्स डे स्पेशल बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteमन की संवेदनाओं को जगाती बहुत ही सार्थक प्रस्तुति ! हर माँ के वंदन के साथ उसका तिरस्कार भी कितना होता है यह भी किसीसे छिपा नहीं है ! मदर्स डे की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteBehatreeeeen
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