Tuesday, May 10, 2016

दिल से उसके जाने कैसा बैर निकला.............. महावीर उत्तरांचली


दिल से उसके जाने कैसा बैर निकला 
जिससे अपनापन मिला वो ग़ैर निकला 

था करम उस पर ख़ुदा का इसलिए ही 
डूबता वो शख़्स कैसा तैर निकला 

मौज-मस्ती में आख़िर खो गया क्यों 
जो बशर करने चमन की सैर निकला 

सभ्यता किस दौर में पहुँची है आख़िर 
बंद बोरी से कटा इक पैर निकला 

वो वफ़ादारी में निकला यूँ अब्बल 
आँसुओं में धुलके सारा बैर निकला 

-महावीर उत्तरांचली

m.uttranchali@gmail.com

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (11-05-2016) को "तेरी डिग्री कहाँ है ?" (चर्चा अंक-2339) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत बहुत सुन्दर ..

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