मुट्ठी भर सपने
दो चार अपने
ख़ुशी के चार पल
तुम्हारी याद नहीं, तुम
बस.…
जिंदगी से
इतना ही तो माँगा था
क्या ये बहुत ज्यादा था !!!
-:-
दुःख में
रोने को एक कांधा
सुख में ... झूलने को दो बाहें
वारी जाने को
एक प्यारी सी मुस्कान
सपने समेटने को
जीवन से भरी दो आँखें
बस.…
जिंदगी से
इतना ही तो माँगा था
क्या ये बहुत ज्यादा था !!!
-:-
ठिठकी सी धूप
जब चढ़े छत की मुंडेर का कोना
तो दौड़ जाएँ मेरी आँखें
गली के कोने तक
और समेट लाएं तुमको
पलकों में बंद करके
ऐसी एक शाम का
एक रूमानी सा इंतजार
बस.…
जिंदगी से
इतना ही तो माँगा था
क्या ये बहुत ज्यादा था !!!
-:-
अक्सर
बड़े बड़े सपनो के पीछे
भागने में
हम इतने व्यस्त हो जाते हैं
कि छोटी छोटी
खुशियों का
मोल ही भूल जाते हैं :-)
बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteसुन्दर एहसासों भरी एक मनोहर रचना। मुझे अच्छी लगी।
ReplyDeleteकुछ भी ज्यादा नहीं था ... पर शायद किस्मत ... शायद किसी का दंभ ...
ReplyDeleteछोटी छोटी खुशियां समेटते रहना अच्छा है जीवन के लिए....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..
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