तुम्हारे पास आता हूँ तो सांसें भींग जाती है
मुहब्बत इतनी मिलती है कि आँखें भींग जाती है
तबस्सुम इत्र जैसा है हंसी बरसात जैसी
वे जब बात करती है तो बातें भींग जाती है
तुम्हारी याद से दिल में उजाला होने लगता है
तुम्हें जब मैं गुनगुनाता हूँ तो सांसें भींग जाती है
ज़मीं की गोद भरती है तो क़ुदरत भी चहकती है
नए पत्तों की आमद से ही शाख़ें भींग जाती है
तेरे अहसास की ख़शबू हमेशा ताजा रहती है
तेरी रहमत की बारिश से मुरादें भींग जाती है
-आलोक श्रीवास्तव
मधुरिमा से.........
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (06-05-2016) को "फिर वही फुर्सत के रात दिन" (चर्चा अंक-2334) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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