वो मुझसे कहती थी
मेरे शायर
ग़ज़ल सुनाओ
जो अनसुनी हो
जो अनकही हो
कि जिसके एहसास
अनछुए हों,
हों शेर ऐसे
कि पहले मिसरे को
सुन के
मन में
खिले तजस्सुस
का फूल ऐसा
मिसाल जिसकी
अदब में सारे
कहीं भी ना हो.......
में उससे कहता था
मेरी जानां
ग़ज़ल तो कोई ये कह चुका है,
ये मोजज़ा तो
खुदा ने मेरे
दुआ से
पहले ही कर दिया,
तमाम आलम की
सबसे प्यारी
जो अनकही सी
जो अनसुनी सी
जो अनछुई सी
हसीं ग़ज़ल है--
"वो मेरे पहलू में
जलवागर है....... !!!"
-सिराज फ़ैसल खान
प्रस्तुत कर्ताः श्री अशोक खाचर
http://ashokkhachar56.blogspot.in/2016/05/blog-post.html
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 05-95-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2333 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
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