Friday, March 7, 2014

देखा है दर्द का बेदर्द हो जाना.................अमित हर्ष


जलाते ही दीया, तेज़ हवा होना
क्या मुनासिब ये हर मर्तबा होना ?

हम भी बतायेंगे, सोच लिया है
तुम्हें ही नहीं आता खफा होना

तजुर्बा कहता है मुमकिन नहीं
हर बार हर वादा वफ़ा होना

नाज़-ओ-नखरों से तेरे नहीं एतराज़ पर
कुछ ज़्यादा तो नहीं इस दफ़ा होना ?

ख़ुश है वही जिन्हें मोहब्बत न हुई
पर बुरा भी नहीं ये तजुर्बा होना

मंज़िलें अलग है रास्ते फ़रक़
बेहतर है अब हमारा जुदा होना

देख लिया पत्थर पे सर पटक कर
महसूस होता रहा तेरा खुदा होना

देखा है दर्द का बेदर्द हो जाना
वो जानता है ज़हर का दवा होना

आपकी समाअतों ने शायर बना दिया
था मुकद्दर में ‘अमित’ ये बदा होना 

-अमित हर्ष

11 comments:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
    इस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 08/03/2014 को "जादू है आवाज में":चर्चा मंच :चर्चा अंक :1545 पर.

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति ...! रचना साझा करने के लिए आभार ...

    RECENT POST - पुरानी होली.

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  3. बहुत सुन्दर रचना आभार इसे साझा करने के लिए यशोदा जी

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  4. बहुत खूब अमित सर। हर पंक्ति की अपनी अलग कहानी है....आभार एंव बधाई

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  5. समय के साथ संवाद करती आपकी यह प्रस्तुित काफी सराहनीय है। मेरे नए पोस्ट DREAMS ALSO HAVE LIFE पर आपके सुझावों की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी।

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  6. देख लिया पत्थर पे सर पटक कर
    महसूस होता रहा तेरा खुदा होना

    देखा है दर्द का बेदर्द हो जाना
    वो जानता है ज़हर का दवा होना

    kya baat hai

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  7. हम भी बताएँगे ................
    बहुत सुंदर

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  8. वाह ... बेहतरीन

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  9. लाजवाब शेरो से सजाया है इस मुकम्मल गज़ल को ... बहुत उम्दा ...

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