प्राप्ति
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तुम्हें खोजता था मैं,
पा नहीं सका,
हवा बन बहीं तुम, जब
मैं थका, रुका ।
मुझे भर लिया तुमने गोद में,
कितने चुम्बन दिये,
मेरे मानव-मनोविनोद में
नैसर्गिकता लिये;
सूखे श्रम-सीकर वे
छबि के निर्झर झरे नयनों से,
शक्त शिराएँ हुईं रक्त-वाह ले,
मिलीं - तुम मिलीं, अन्तर कह उठा
जब थका, रुका ।
~सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
मेरे मानव-मनोविनोद में
नैसर्गिकता लिये;
सूखे श्रम-सीकर वे
छबि के निर्झर झरे नयनों से,
शक्त शिराएँ हुईं रक्त-वाह ले,
मिलीं - तुम मिलीं, अन्तर कह उठा
जब थका, रुका ।
~सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
साभार--
https://www.facebook.com/pages/Selected-Pearls-चुने-हुए-मोती
मिलीं - तुम मिलीं, अन्तर कह उठा
ReplyDeleteजब थका, रुका.....
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