होती ही जा रही है, मेरी हर राह मुश्किल,
हर क़दम मुझे अब , दुश्वार होने लगा है।
चैन बहुत मिलता है ,अब तड़पने मे मुझे,
दर्द-ए-दिल ही ,दिल की दवा होने लगा है।
होने लगा खुद का ,वजुद भी मुझसे ज़ुदा,
ज़िन्दगी जबसे, तेरा सामना होने लगा है,
पर फ़ासला ,अपनो से भी बढने लगा है।
इक तस्वीर हो गया है, इंसान दीवार पर,
इंसान भी अब ,क्या से क्या होने लगा है।
कुछ और नही ,तुम्हारी यादों के ज़ख्म है,
दर्द अब तो "अधीर", ज्यादा होने लगा है।
-सुरेश पसारी "अधीर"
इक तस्वीर हो गया है, इंसान दीवार पर,
ReplyDeleteइंसान भी अब ,क्या से क्या होने लगा है।
शुक्रिया राहुल भाई
Deleteसुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteआभार रविकर भाई
Deleteदीदी वन्दन
ReplyDeleteअफसोस है कि दर्द भी अब छोड़ता है साथ
ReplyDeleteयह भी आखिर वक्त कहीं है ,और कहीं नहीं |.....अनु
आभार दीदी
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहोने लगा खुद का ,वजुद भी मुझसे ज़ुदा,
ReplyDeleteज़िन्दगी जबसे, तेरा सामना होने लगा है,
दुश्मनो से भी की ,दोस्ती की बात मैने,
पर फ़ासला ,अपनो से भी बढने लगा है।
sajjan jee
आभार सज्जन भाई
Deleteहोने लगा खुद का ,वजुद भी मुझसे ज़ुदा,
ReplyDeleteज़िन्दगी जबसे, तेरा सामना होने लगा है,
दुश्मनो से भी की ,दोस्ती की बात मैने,
पर फ़ासला ,अपनो से भी बढने लगा है।
sundar
दुश्मनो से भी की ,दोस्ती की बात मैने,
ReplyDeleteपर फ़ासला ,अपनो से भी बढने लगा है।
क्यूँ होता है ऐसा ,समझ में आने लगा है ?
दीदी शुभ संध्या
Deleteकुछ और नही ,तुम्हारी यादों के ज़ख्म है,
ReplyDeleteदर्द अब तो "अधीर", ज्यादा होने लगा है।
भावपूर्ण रचना..
हृदयस्पर्शी...
:-)
आभार रीना दी
Deleteसुन्दर पंक्तियाँ
ReplyDeleteभावों का समुद्र उमड आया है इस कविता मे।
ReplyDeleteवाह वाह वाह बहुत खूब एक एक लफ्ज़ बोलता हुआ |
ReplyDelete