Monday, June 22, 2020

जो देखता हूँ मैं वो भूलता नहीं ...तहज़ीब हाफ़ी

इस एक डर से ख़्वाब देखता नहीं
जो देखता हूँ मैं वो भूलता नहीं

किसी मुंडेर पर कोई दिया जला
फिर इस के बाद क्या हुआ पता नहीं

मैं आ रहा था रास्ते में फूल थे
मैं जा रहा हूँ कोई रोकता नहीं

तिरी तरफ़ चले तो उम्र कट गई
ये और बात रास्ता कटा नहीं

इस अज़दहे की आंख पूछती रहीं
किसी को ख़ौफ़ आ रहा है या नहीं

मैं इन दिनों हूं ख़ुद से इतना बे-ख़बर
मैं बुझ चुका हूं और मुझे पता नहीं

ये इश्क़ भी अजब कि एक शख़्स से
मुझे लगा कि हो गया हुआ नहीं

-तहज़ीब हाफ़ी

4 comments:

  1. वाह!
    ये इश्क़ भी अजब कि एक शख़्स से
    मुझे लगा कि हो गया हुआ नहीं

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. ये इश्क़ भी अजब कि एक शख़्स से
    मुझे लगा कि हो गया हुआ नहीं!!!

    अपने नये तेवर की रचनाओं के
    लिए पहचाने जाने वाले , पाकिस्तानी अदब के कुमार विश्वास , हाफी की बहुत भावपूर्ण रचना। वाह! ;;!!!!!!! 👌👌👌👌👌

    ReplyDelete
  4. हर बात लाजवाब ,बहुत खूब

    ReplyDelete