Friday, June 19, 2020

उड़ते - उड़ते एक दिन ....मनीष वर्मा

उड़ते - उड़ते एक दिन, 
जा बैठूं किसी मुंडेर पर... 
खिलखिलाती हो हंसी जहाँ, 
हों खुशियां छोटी - छोटी। 
प्यार करें इक - दूजे से सब, 
मिलजुल कर खाएं रोटी।

उड़ते - उड़ते एक दिन, 
जा बैठूं किसी मुंडेर पर... 

न हो शोर - शराबा जहाँ, 
बस सुने मधुर संगीत। 
एक - दूसरे संग मिलकर, 
करें सब समय व्यतीत। 

उड़ने का हो समय, 
मन करे बैठूं वहीं कुछ देर, पर। 
अगले दिन फिर यूं ही, 
जा बैठूं उसी मुंडेर पर। 

उड़ते - उड़ते एक दिन..
उड़ते - उड़ते एक दिन,  जा बैठूं किसी मुंडेर पर...
-मनीष वर्मा

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 19 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सुन्दर प्रस्तुति

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