Thursday, January 30, 2020

दूर तक नज़र नहीं आता किनारा...दिलबागसिंह विर्क

कुछ इस क़द्र गर्दिश में है मेरा सितारा 
कहीं दूर तक नज़र नहीं आता किनारा। 

उन्हें गवारा नहीं मेरी हाज़िरजवाबी 

मुझे ख़ामोश रहना, नहीं है गवारा।

अपने हुनर की दाद पाना चाहता होगा 

तभी ख़ुदा ने चाँद को ज़मीं पर उतारा। 

बस अपनी मुलाक़ात हो नहीं पाती वरना 

गैरों से रोज़ पूछता हूँ, मैं हाल तुम्हारा। 

बीच रास्ते में कहीं साथ छोड़ देता है ये 

क़दमों के साथ घर न आए, दिल आवारा। 


फ़र्ज़ानों की नज़र में तो दीवाना ही हूँ मैं 

कौन पागल है ‘विर्क’, जिसने मुझे पुकारा।  

लेखक परिचय- दिलबागसिंह विर्क 

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