सर्द सन्नाटा ...
सुबह के वक़्त
आँखें बंद कर के देखती हूँ जब
तो यह जिस्म के कोनो से
ससराता हुआ निकलता जाता है
सूरज की किरणे गिरती हैं
जब भी इस पर
तो खिल उठता है यह
फूल बनकर
और मुस्कुरा देता है
आँखों में मेरी झांक कर
कभी यह जिस्म के कोनो में
ठहर भी जाता है
कभी गीत बन कर
होठों पर रुक जाता है
और कभी
गले के सुरों को पकड़
गुनगुनाता है
फिर शाम के
रंगीन अंधेरों में घुल कर
सर्द रातों में गूंजता है अक्सर
सर्द सन्नाटा
मेरे करीब आजाता है बहुत
मेरा हबीब
सन्नाटा
-मीना चोपड़ा
वाह
ReplyDeleteसहृदय आभार सुशील जी।
Deleteमैंने अभी आपका ब्लॉग पढ़ा है, यह बहुत ही शानदार है।
ReplyDeleteViral-Status.com
आभार सागर जी
Deleteऔर मुस्करा देती है आँखों में मेरी झाँककर।बेहद खूबसूरत।
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