Sunday, June 24, 2018

मेरी बेटी....मंजू मिश्रा

आज तुम 
इतनी बड़ी हो गयी हो 
कि मुझे तुम से 
सर उठा कर 
बात करनी पड़ती है
सच कहूं तो 
बहुत फ़ख्र महसूस करती हूँ 
जब तुम्हारे और मेरे 
रोल और सन्दर्भ 
बदले हुए देखती हूँ 
आज तुम्हारा हाथ

मेरे कांधे पर और 
कद थोड़ा निकलता हुआ  
कभी मेरी ऊँगली और 
तुम्हारी छोटी सी मुट्ठी हुआ करती थी 
हम तब भी हम ही थे 
हम अब भी हम ही हैं 
-मंजू मिश्रा


12 comments:

  1. हम तब भी हम ही थे

    हम अब भी हम ही हैं - kitni sundar Rachna hai ye!

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    1. अापको रचना पसंद अाई, बहुत अाभार !

      सादर
      मंजु मिश्रा
      www.manukavya.wordpress.com

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  2. वाह कोमल और सुंदर भाव पुत्री गर्विता मां का विश्वास

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    1. धन्यवाद कुसुम कोठारी जी !

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  3. वाह कितना सहज लेखन हर माँ के मन का स्पंदन !

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (25-06-2018) को "उपहार" (चर्चा अंक-3012) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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    1. धन्यवाद राधा तिवारी जी !

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  5. पुत्री गर्विता माँ के मन का सरल ,सहजऔर सुंदर हृदयस्पर्शी वात्सल्य भरा उद्वेग !!!!!!!माँ बेटी का रिश्ता अटूट है | सस्नेह -----------

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  6. वाह जी क्या बात

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