उड़ कर दिखा दे...........दिव्या भसीन
 
बन जा मिट्टी
या मिट्टी बना दे,
बंद कर ले पिंजरा, अंदर से, 
या उड़ कर दिखा दे। 
सीख जा तैरना, उलटी दिशा में
या लहरों को दिशा बदलना सिखा दे। 
बन जा पतंगा, जल जा 
या बन लौ और सबको जला दे। 
बन राहों का पत्थर, खा ठोकरें 
या बन मूरत सबको झुका दे। 
ले फैसला, कुछ तो कर 
बदल जा
या बदलाव ला दे। 
-दिव्या भसीन 
 
 
 
          
      
 
  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-11-2016) के चर्चा मंच ""देश का कालाधन देश में" (चर्चा अंक-2541) पर भी होगी!
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ले फैसला, कुछ तो कर
ReplyDeleteबदल जा
या बदलाव ला दे।
वाह बहुत सुन्दर ।
आपने लिखा....
ReplyDeleteमैंने पढ़ा....
हम चाहते हैं इसे सभ ही पढ़ें....
इस लिये आप की रचना दिनांक 29/11/2016 को पांच लिंकों का आनंद...
पर लिंक की गयी है...
आप भी इस प्रस्तुति में सादर आमंत्रित है।
वाह सुन्दर रचना
ReplyDeleteसही में बदलाव अत्यावश्यक है