Wednesday, April 23, 2014

वो “इश्क” है............दिव्येन्द्र कुमार



वो “इश्क” है , पर न इश्क समझता है
अफ़सोस मेरी उल्फत को वो नफरत समझता है !

मुबारक हैं उसको ऊंचाईयां आजाद परिंदों की,
पिंजड़े की कशमशाहट को वो बगावत समझता है !

इफ्तिखार हासिल है उसे बेबाक लहरों का ,
साहिल को वो बस रेत की हरकत समझता है !

बन गया है खुदा खुद, अपने ही पैमानों पर,
इबादत को मेरी बेअदब हिमाकत समझता है !

चाँद है आशुफ्ता वो तारों की इक्तिजा में ,
चाहत को अपनी ना मेरी हसरत समझता है !

-दिव्येन्द्र कुमार

8 comments:

  1. Thanx for sharing and appreciation !

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  2. मर गया वो ज़ाहिर-बीं अपनी मौत से पहले..,
    हबाबी दुनिआ को जो आक़बत समझता है.....

    ज़ाहिर-बीं = जाहिर परस्त, जो केवल दृष्यमान पर विश्वास करता हो
    हबाबी दुनिआ = पानी के बुलबुले जैसा संसार, क्षणभंगुरी दुनिया

    आजाद परिंदों की परवाज उसको है मुबारक..,
    नफ़स की कश्मकश को वो बगावत समझता है.....

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