Friday, December 30, 2011

स्वाति बूँद उपहार को पाकर प्रणित करो अनमोल सा मोती ... . . . . . .. मुकेश ठन्ना

..कभी नहीं तुम अपने मृगनयनो में मेरी छवि बसाना ,
.
रस गुलाब से अपने होठों पे ना मेरा नाम सजाना ,,
.
चाहे अपने बदन की खुशबु से ना मेरा घर महकाना ,,
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नागिन जैसी चाल से अपनी मुझको तुम ना यूँ बहकाना ,,
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चाहे मुझसे प्रेम ना करना मेरे सपनो में ना खोना ,,
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दूर कभी तुम मुझसे जाके मेरी यादों में ना रोना

.....परन्तु अंतर्मन के एक कोने में मुझको रहने देना ,,

अपनी स्मृतियों से ओझल तुम कभी न मुझको होने देना ,,

क्योंकि तुम हो मनः प्रेरणा तुम हो मेरी शाश्वत शक्ति ,,

में हूँ सागर शांत स्निग्ध औ तुम हो अविरल सरिता बहती

धाराओं के संग बहना तो विरह व्यथा का एक बहाना ,,

आखिरकार तुम्हे तो आकर मेरे ही अन्दर है समाना ,,

मेरा अस्तित्व है स्वाति बूँद और तुम सलिल की हो एक सीपी ,,

स्वाति बूँद उपहार को पाकर प्रणित करो अनमोल सा मोती ..


. . . . . . .. मुकेश ठन्ना

2 comments:

  1. ..कभी नहीं तुम अपने मृगनयनो में मेरी छवि बसाना ,
    .
    रस गुलाब से अपने होठों पे ना मेरा नाम सजाना ,,
    .
    चाहे अपने बदन की खुशबु से ना मेरा घर महकाना ,,
    .
    नागिन जैसी चाल से अपनी मुझको तुम ना यूँ बहकाना ,,

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