Sunday, December 11, 2011

तुझको यूँ चाहा है....................कैफे आजमी ब्लाग "दरीचा" से

तुझको यूँ चाहा है

तुझको यूँ देखा है, यूँ चाहा है, यूँ पूजा है

तू जो पत्थर की भी होती तो ख़ुदा हो जाती

बेख़ता रूठ गई रूठ के दिल तोड़ दिया

क्या सज़ा देती अगर कोई ख़ता हो जाती

हाथ फैला दिये ईनाम-ए-मोहब्बत के लिये
ये न सोचा कि मैं क्या, मेरी मोहब्बत क्या है
रख दिया दिल तेरे क़दमों पे तब आया ये ख़याल
तुझको इस टूटे हुए दिल की ज़रूरत क्या है

तुझको यूँ देखा है, यूँ चाहा है, यूँ पूजा है
तू जो पत्थर की भी होती तो ख़ुदा हो जाती

तेरी उल्फ़त के ख़रीदार तो कितने होंगे
तेरे गुस्से का तलबगार मिले या ना मिले
लिख दे मेरे ही मुक़द्दर में सज़ायें सारी
फिर कोई मुझसा गुनहगार मिले या ना मिले

तुझको यूँ देखा है, यूँ चाहा है, यूँ पूजा है
तू जो पत्थर की भी होती तो ख़ुदा हो जाती

----कैफे आजमी

प्रस्तुतिः "ज़नाब वसीम अकरम"

ब्लाग "दरीचा" 

http://dareecha.blogspot.com/ 

                                                  

1 comment:

  1. khoobsurat gajal.....bhavnao ko acchi tarah se pesh kiya gya hai...
    kaifi saheb aur apko dono ko badhai.....ki asi pyari gajal se hame rubru kraya.

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