ये चन्द रोज़ का हुस्न ओ शबाब धोका है
सदाबहार हैं कांटे गुलाब धोका है
मिटी न याद तेरी बल्कि और बढती गई
शराब पी के ये जाना शराब धोका है
तुम अपने अश्क छुपाओ न यूँ दम ए रुखसत
उसूल ए इश्क में तो ये जनाब धोका है
ये बात कडवी है लेकिन यही तजुर्बा है
हो जिस का नाम वफ़ा वो किताब धोका है
तमाम उम्र का वादा मैं तुम से कैसे करूँ
ये ज़िन्दगी भी तो मिस्ल ए हुबाब धोका है
पड़े जो ग़म तो वही मयकदे में आये रशीद
जो कहते फिरते थे सब से "शराब" धोका है ....
----आदिल रशीद तिलहरी
सदाबहार हैं कांटे गुलाब धोका है
मिटी न याद तेरी बल्कि और बढती गई
शराब पी के ये जाना शराब धोका है
तुम अपने अश्क छुपाओ न यूँ दम ए रुखसत
उसूल ए इश्क में तो ये जनाब धोका है
ये बात कडवी है लेकिन यही तजुर्बा है
हो जिस का नाम वफ़ा वो किताब धोका है
तमाम उम्र का वादा मैं तुम से कैसे करूँ
ये ज़िन्दगी भी तो मिस्ल ए हुबाब धोका है
पड़े जो ग़म तो वही मयकदे में आये रशीद
जो कहते फिरते थे सब से "शराब" धोका है ....
great
ReplyDeleteइश्क़, वफ़ा, शराब—हर चीज़ को धोखे से जोड़ना कहीं न कहीं इंसानी तजुर्बे का सच्चा आईना लगता है। ये ग़ज़ल सिर्फ़ अल्फ़ाज़ नहीं, बल्कि दर्द और ठहराव की कहानी कहती है। मुझे अच्छा लगा कि तुमने मोहब्बत और ज़िंदगी को इतनी सादगी और तीखेपन से बयान किया।
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